नाविक के तीर
( अधोलिखित तीनो रचना जयपुर में पंडित दीन दयाल शोध संस्थान द्वारा आयोजित "निजीकरण से ही देश का विकास संभव है " विषयक व्याख्यान माला में अपने भाषण के पक्ष को प्रभावशाली बनाने हेतु सृजित )
मेरा खेत खलिहान है मेरा मै हूँ इस बगिया का माली !
निजता का मन मे भाव लिये मुस्तैदी से करता रखवाली !!
"यह मेरा है " यह भाव ना हो तो मेरी बला से चर जाये ढोर !
चाहे उजड़े चमन मेरे ठेन्गे से या फ़िर झाडू फ़ेरे चोर !!
घर्षण झेला जिस पत्थर ने शालिग्राम सरीखा हो गया गोल !
घिसने से जिसने जी चुरा लिया वह पत्थर रह गया बेडौल !!
होश मे हमको लाती होड़ जोश मे हम को लाती होड़ !
हमे जगाती हमे भगाती होड़ का नही कोयी तोड़ !!
( अधोलिखित लघु रचना संग्रह विविध अवसर परिस्थिति व संदर्भ मे लिखे गये दोहे एवं शे'र का संग्रह है ! इनकी आपस मे कोई पारस्परिक संबद्धता नही है )
खाण्ड लिपट ऊपर चढी और कैद हो गया दाना !
दाने का बलिदान न हो तो कैसे बने मखाना !!
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सेहरा शमा के सर बन्धा कि लो अन्धियारा भागा !
खामोशी से जला बीच मे धागा बड़ा अभागा !!
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निमित्त मात्र है आयोजक, श्रोता, वक्ता वृन्द !
खेवनहार है परब्रह्म स्वयं सच्चिदानंद !!
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" मै करता, मैने किया " यह मिथ्या अभिमान !
दिखता कोई और है पर 'कर्ता' है श्री भगवान् !!
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अर्जन संग विसर्जन कीजे यह जीवन का सार !
जल संचै वितरण नही वह ताल कूप बेकार !!
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नव चिंतन नवचेतना नव विचार नवाचार !
वातायन ज़रा खोलिए कि आये नयी बयार !!
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जो फ़कीर है लकीर के वोह कैदी घेरे के !
लीक तोड़ आगे बढे वो साथी नए सवेरे के !!
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(और ये कुछ शरारती शे'र)
अफ़वाह आम है कि वोह सुधर गये है अब
दर्याफ़्त से मालूम हुआ कि नली टेढ़ी हो गयी !
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मोर्चा-ए-जंग पे क्यों खामोशी है तारी !
गोला बारूद खत्म या फ़िर तोपची सो गये !!
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