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बुधवार, 21 दिसंबर 2011

लघु रचना (दोहे)


नाविक के तीर

( अधोलिखित तीनो रचना जयपुर में पंडित दीन दयाल शोध संस्थान द्वारा आयोजित  "निजीकरण से ही देश का विकास संभव है " विषयक व्याख्यान माला में अपने भाषण के पक्ष को प्रभावशाली बनाने  हेतु सृजित )

मेरा   खेत   खलिहान  है  मेरा  मै  हूँ  इस बगिया  का  माली !
निजता  का  मन  मे  भाव लिये मुस्तैदी  से  करता  रखवाली  !!
"यह मेरा है " यह भाव ना हो  तो मेरी बला से चर जाये ढोर !
चाहे  उजड़े  चमन  मेरे ठेन्गे से या फ़िर झाडू  फ़ेरे  चोर !!

घर्षण झेला जिस पत्थर ने शालिग्राम सरीखा हो गया गोल !
घिसने  से जिसने जी चुरा लिया वह पत्थर रह गया बेडौल !!

होश मे हमको लाती होड़ जोश मे हम को लाती होड़ !
हमे   जगाती   हमे   भगाती  होड़ का नही कोयी तोड़ !!



( अधोलिखित  लघु रचना संग्रह विविध अवसर परिस्थिति संदर्भ मे लिखे गये दोहे एवं शे' का संग्रह है !  इनकी  आपस मे कोई पारस्परिक संबद्धता नही है )

खाण्ड लिपट ऊपर  चढी  और  कैद हो गया दाना  !
दाने   का  बलिदान    हो  तो  कैसे  बने मखाना !!
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सेहरा  शमा  के सर बन्धा कि लो अन्धियारा भागा  !
खामोशी   से  जला  बीच  मे  धागा  बड़ा  अभागा !!
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निमित्त  मात्र  है  आयोजक, श्रोता, वक्ता वृन्द   !
खेवनहार    है   परब्रह्म   स्वयं  सच्चिदानंद !!
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" मै करता, मैने किया "  यह  मिथ्या  अभिमान !
दिखता कोई  और है पर 'कर्ता' है श्री   भगवान् !!
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अर्जन संग विसर्जन कीजे यह जीवन का  सार  !
जल  संचै  वितरण  नही  वह   ताल कूप बेकार !!
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नव चिंतन   नवचेतना   नव विचार   नवाचार   !
वातायन  ज़रा  खोलिए  कि    आये नयी बयार !!
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जो  फ़कीर  है  लकीर  के  वोह  कैदी  घेरे के   !
लीक  तोड़  आगे  बढे  वो  साथी  नए सवेरे के  !!
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(और ये कुछ शरारती शे')

अफ़वाह  आम  है  कि  वोह सुधर  गये है अब
दर्याफ़्त  से  मालूम हुआ कि नली टेढ़ी हो गयी !
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मोर्चा--जंग  पे  क्यों  खामोशी   है  तारी !
गोला  बारूद  खत्म  या  फ़िर  तोपची  सो गये !!

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