[ सहज नहीं है काव्य सृजन,सहज है तो आलोचना ! काव्य सृजन की क्या परिस्थिति होती है, क्या कवि की मनस्थिति होती है व कैसे होता है काव्य सृजन, से आप सुधि पाठकों को रू-ब-रू कराने को प्रस्तुत है यह कविता - बी जी शर्मा ]
कविता का जन्म
मन मे भरी हो विरह वेदना, या प्रिय से मिलने का उल्लास !
घोर निराशा का अन्धियारा, या आशा उत्साह का हो प्रकाश !!
अन्तस् मे उबल रहा आक्रोश, या पीड़ा से भीगा हो मन !
कल्पना का अम्बार लगा हो, छोटा पड़ रहा मन का आँगन !
ज्वालामुखी फट पडने को हो , मन मे भट्टी भावों की तपती है !
कवि की कलम से फूटे झरना, तब कही एक गजल बनती है !!
शब्दों का नहीं भीड़ भड़क्का, सार्थक शब्दों की पांत सजा दी !
भाषा है रथ विषय है दूल्हा, और भावों की बारात सजा दी !!
काव्य रसों की मेहंदी रचा कर, कविता दुल्हन बन बैठी है !
उपमा के गहनों से सजधज पाठक के मन में पैठी है !!
कल्पनाओं के इन्द्रधनुष पर, विचारों की प्रत्यन्चा तनती है !
सुधि श्रोताओं का मन हरने, तब कविता या गजल बनती है !!
भूख प्यास नहीं नींद उचट गयी, न जाने क्यूँ मन है व्याकुल !
अजन्मी कविता बदले करवट, इसीलिए कविवर है आकुल !!
भाव स्निग्ध पर शब्द न मिले, मिले शब्द तो विषय अस्पष्ट !
अपूर्ण कविता कैसे पूर्ण हो, कविवर का बस एक ही कष्ट !!
कोख कमल में नौ महीने रख, जैसे माँ बच्चा जनती है !
कवि जब भुगते प्रसव वेदना, तब कहीं एक गजल बनती है
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