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गुरुवार, 16 अगस्त 2012

ओ बादलियो बरस्यो कोनी


 राजस्थानी कविता 

 प्रेषक-गौरी शंकर शर्मा 
(ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था पूर्णतः वर्षा आधारित है। पर जब वर्षा अर्थात बादल दगा दे जाए तब गांव की, विशेषतः कृषक महिलाओं की क्या स्थिति होती है, का करुण चित्र इस कविता में खींचा गया है। इस वर्ष मानसून के आने में विलम्ब से ‘‘जल ही जीवन है’’ ,को हमने बड़ी शिद्दत से समझा महसूस किया। पर इस से प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होने वाले वाले गांवों पर क्या प्रभाव पडता है, का जीवंत वर्णन ताल छापर तहसील सुजानगढ़  जिला चुरू राजस्थान निवासी कवि स्वर्गीय छगनमल शर्मा ने किया है, जो सुजलांचल के राजस्थानी भाषा के ख्यात नाम यशस्वी कवि रहे हैं। प्रस्तुत कविता उनके ही पुत्र सहित्य्कार एवम कवि, श्री गौरी शंकर शर्मा ने प्रेषित की है- संपादक)

मैं बाबल रे घर चिड्कोली
सासू  रे  आगे  लाड़ बहु
दो  रोटी खातर बिलखू हूँ
ओ दुखड़ो किण ने जाय कहूँ

जद मजदूरण मन मार उठी
हालर ने दीन्यो परो फेंक
ली मेल तगारी माथे पर
रोई बादल ने देख देख

ओ धणी धजालो जाणे है
मैं खारा मीठा चाखू हूँ
ओ बदलियो बरस्यो कोनी
मैं जण जण रो मुह ताकूँ हूँ


ओ धेनड़ियो जद जलाम्यो हो
कर कोड भुवा जी आया हां
ल्याया हां छूछक नानाजी
घर भर म हरख सवाया हां

पण आज चुंगा नी पाऊँ मैं
परबस हूँ बोल सकूँ कोनी
ए मेट साब अफसर करडा
मूंडो भी खोल सकूँ कोनी

  रोवंतड़े  लाडेसर  ने
भूखो ही धरत्या न्हाकूं हूँ
ओ बादलियो बरस्यो कोनी
मैं जण जण रो मुह ताकूँ हूँ


म्हे  खेत  खाटबा जाता जद
मारुजी सार  घणी करता
बे  छाक  उतारण बेगा  सा
हल  छोड़ सामने पग धरता

पण आज खोद आली माटी
दे  टोक  ऊंचावे  है  कूंडो
अपणायत  सारी  भूल गया
  पापी  पेट  घणू भून्डो

दिन भर चकरी ज्यूँ भाज भाज
पग  दूखे  भारी  थाकूं हूँ
ओ बादलियो बरस्यो कोनी
मैं जण जण रो मुह ताकूँ हूँ


दिन उगता पेली टाबरिया
रोटी  रे  खातर  गरलावे
सांची सुण भूखा मरता ही
खाली आँतड़ियाँ कुरलावे

आफत ही आफत चोफेरां
हे राम कठीने जाऊं मैं
रुपिया रो धोबो धान मिले
किण रे लिलाड़ लगाऊँ मैं

जाणे ह जिवड़ो म्हाकालो
नीठा  पुचकारूं  राखूं  हूँ
ओ बादलियो बरस्यो कोनी
मैं जण जण रो मुह ताकूँ हूँ


दिन बीस हुआ पचताने पण
कुण् जाणे कद खुलसी थेल्याँ
के खाकर दिन भर काम करां
के पेट रे अब  गाँठा   देल्याँ

हाटां  पर  मिले  उधार  नहीं
जे  मिल्ज्या  तो  दूणा लागे
पटवारी   बात  सुण   कोनी
के करां ? पुकारां  किन आगे

आ फंसगी ज्यान झमेला म
मैं नहीं लूण  की फाकूं हूँ
ओ बादालियो बरस्यो कोनी
जण जण रो मुह ताकूँ हूँ


पण आज सुणी है गावां में
साईं धान मिलेला अब सस्ता
भीजी रो ज्ञान पकड़ ल्यां  तो
ओज्युं ही रे ज्यावां बसता

फिरतो सांवारियो बरसा दे
खेता म भेली फोज हुआँ
धोरां पर बाजर लहरावे
फिर तो म्हे राजा भोज हुआँ

आ साची साची बात कही
कूड़ी बिलकुल नहीं भान्कूं हूँ
ओ बादालियो बरस्यो कोनी
मैं जण जण रो मुह ताकूँ हूँ



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