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गुरुवार, 16 अगस्त 2012

ओ बादलियो बरस्यो कोनी


 राजस्थानी कविता 

 प्रेषक-गौरी शंकर शर्मा 
(ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था पूर्णतः वर्षा आधारित है। पर जब वर्षा अर्थात बादल दगा दे जाए तब गांव की, विशेषतः कृषक महिलाओं की क्या स्थिति होती है, का करुण चित्र इस कविता में खींचा गया है। इस वर्ष मानसून के आने में विलम्ब से ‘‘जल ही जीवन है’’ ,को हमने बड़ी शिद्दत से समझा महसूस किया। पर इस से प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होने वाले वाले गांवों पर क्या प्रभाव पडता है, का जीवंत वर्णन ताल छापर तहसील सुजानगढ़  जिला चुरू राजस्थान निवासी कवि स्वर्गीय छगनमल शर्मा ने किया है, जो सुजलांचल के राजस्थानी भाषा के ख्यात नाम यशस्वी कवि रहे हैं। प्रस्तुत कविता उनके ही पुत्र सहित्य्कार एवम कवि, श्री गौरी शंकर शर्मा ने प्रेषित की है- संपादक)

मैं बाबल रे घर चिड्कोली
सासू  रे  आगे  लाड़ बहु
दो  रोटी खातर बिलखू हूँ
ओ दुखड़ो किण ने जाय कहूँ

जद मजदूरण मन मार उठी
हालर ने दीन्यो परो फेंक
ली मेल तगारी माथे पर
रोई बादल ने देख देख

ओ धणी धजालो जाणे है
मैं खारा मीठा चाखू हूँ
ओ बदलियो बरस्यो कोनी
मैं जण जण रो मुह ताकूँ हूँ


ओ धेनड़ियो जद जलाम्यो हो
कर कोड भुवा जी आया हां
ल्याया हां छूछक नानाजी
घर भर म हरख सवाया हां

पण आज चुंगा नी पाऊँ मैं
परबस हूँ बोल सकूँ कोनी
ए मेट साब अफसर करडा
मूंडो भी खोल सकूँ कोनी

  रोवंतड़े  लाडेसर  ने
भूखो ही धरत्या न्हाकूं हूँ
ओ बादलियो बरस्यो कोनी
मैं जण जण रो मुह ताकूँ हूँ


म्हे  खेत  खाटबा जाता जद
मारुजी सार  घणी करता
बे  छाक  उतारण बेगा  सा
हल  छोड़ सामने पग धरता

पण आज खोद आली माटी
दे  टोक  ऊंचावे  है  कूंडो
अपणायत  सारी  भूल गया
  पापी  पेट  घणू भून्डो

दिन भर चकरी ज्यूँ भाज भाज
पग  दूखे  भारी  थाकूं हूँ
ओ बादलियो बरस्यो कोनी
मैं जण जण रो मुह ताकूँ हूँ


दिन उगता पेली टाबरिया
रोटी  रे  खातर  गरलावे
सांची सुण भूखा मरता ही
खाली आँतड़ियाँ कुरलावे

आफत ही आफत चोफेरां
हे राम कठीने जाऊं मैं
रुपिया रो धोबो धान मिले
किण रे लिलाड़ लगाऊँ मैं

जाणे ह जिवड़ो म्हाकालो
नीठा  पुचकारूं  राखूं  हूँ
ओ बादलियो बरस्यो कोनी
मैं जण जण रो मुह ताकूँ हूँ


दिन बीस हुआ पचताने पण
कुण् जाणे कद खुलसी थेल्याँ
के खाकर दिन भर काम करां
के पेट रे अब  गाँठा   देल्याँ

हाटां  पर  मिले  उधार  नहीं
जे  मिल्ज्या  तो  दूणा लागे
पटवारी   बात  सुण   कोनी
के करां ? पुकारां  किन आगे

आ फंसगी ज्यान झमेला म
मैं नहीं लूण  की फाकूं हूँ
ओ बादालियो बरस्यो कोनी
जण जण रो मुह ताकूँ हूँ


पण आज सुणी है गावां में
साईं धान मिलेला अब सस्ता
भीजी रो ज्ञान पकड़ ल्यां  तो
ओज्युं ही रे ज्यावां बसता

फिरतो सांवारियो बरसा दे
खेता म भेली फोज हुआँ
धोरां पर बाजर लहरावे
फिर तो म्हे राजा भोज हुआँ

आ साची साची बात कही
कूड़ी बिलकुल नहीं भान्कूं हूँ
ओ बादालियो बरस्यो कोनी
मैं जण जण रो मुह ताकूँ हूँ



महान पौराणिक महिलाएं : प्रचलित बनाम वास्तविक नाम

 - देवदत्त शर्मा  

 (यह शोध परक लेख श्री देवदत्त शर्मा , अजमेर ने भेजा हैजो मूलतः रेवेन्यू बोर्ड अजमेर में एडवोकेट हैं। वकालत के नीरस पेशे का साहित्य रसास्वादन एवं सृजनअध्यवसाय से दूर दूर का वास्ता नहीं होता किन्तु व्यक्ति के भीतर रस का सोता कहीं सोता हो तो अवसर पाते ही फूट पड़ता है। आशा है श्री शर्माजी का यह सर्वथा मौलिक लेख आपको नवीन जानकारियों से रू-ब-रू कराएगा -संपादक ) 

           भारतीय संस्कृति मातृशक्ति की संस्कृति रही है। समाज में पुरुषों के साथ महिलाओं को सदा सम्मानजनक स्थान मिला है। पौराणिक गाथाओं में विख्यात महिलाओं के प्रसंग हैजो आज सर्वत्र वन्दनीय है। जन मानस में प्रत्येक की वाणी पर इनके नाम अमर है। परन्तु आश्चर्य इस बात का है कि जिन नामों से ये नारियाँ विख्यात हैवे इनके वास्तविक नाम नहीं है। कुछ के वास्तविक नामों का उल्लेख हैपरन्तु उनका प्रचलन ही नहीं है। नाम का यह रहस्य विशेषणों एवं राजनीतिक प्रभाव को ही दर्शाता है। तथापि इन नारियों ने अपनी प्रतिभा के बल पर ख्याति प्राप्त की है। ऐसी ही कुछ वन्दनीय महिलाओं के नामों का उल्लेख करना उचित होगाजिनसे भारतीय संस्कृति एवं समाज सदा प्रभावित रहे हैं। ये हैं-  

देवी पार्वती
 (1) पार्वती- भगवान शिव की पत्नी शक्ति स्वरूपा एवं देवी माँ के रूप में पूजनीय है। ‘पार्वती’ नाम से विख्यात संज्ञा वस्तुतः कुल परंपरागत नाम है। पर्वतराज (हिमवान) की पुत्री होने के कारण इन्हें पार्वती नाम से जाना जाता है। पार्वती का वास्तविक नाम तो ‘शिवा’ है। किन्तु इनके  शिवा’ नाम से जन मानस अनभिज्ञ है। 



माता कौशल्या 
 (2) कौशल्या- मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की माता का यह नाम वास्तविक नहीं है। वस्तुतः कौशल राज्य की राजकुमारी होने के कारण इन्हें ‘कौशल्या’ के नाम से जाना जाने लगा। इनके वास्तविक नाम का कहीं कोई उल्लेख नहीं है। 



माता सुमित्रा 
 (3) सुमित्रा- अयोध्या नरेश दशरथ की दूसरी पत्नी का नाम सुमित्रा भी उनके पिता के सन्दर्भ में है|इनके पिता का नाम सुमित था अतः इन्हें लोक में सुमित्रा के नाम से जाना जाता है। 


माता कैकेयी
 (4) कैकेयी - महाराज दशरथ की तृतीय महत्वाकांक्षी पत्नी कैकेयी को मैं सर्वाधिक वन्दनीय मानता हूँ। कैकेयी का सम्पूर्ण जीवन लोकरक्षक का रहा है। कैकेय नरेश की पुत्री होने के कारण अयोध्या में इन्हें कैकेयी के नाम से जाना जाता है। इनके वास्तविक नाम का कहीं कोई जिक्र नहीं हैं। यह महिला रघुकुल की प्रतिष्ठित,राम,दशरथ एवं सम्पूर्ण रघुकुल की हितैषी रही है। कठोर निर्णय लेने के कारण लोक में इनकी आलोचना हुयी। 



माता शबरी
 (5) ‘शबरी’- भी वास्तविक नाम नहीं है। वस्तुतः शबर नामक आदिवासी जाति के नाम से इस महिला को ‘शबरी’ के नाम से जाना गया। आदिवासी जाति भील का सुसंस्कृत नाम शबर है। 



माता गांधारी
 (6) गांधारी- महाभारत की विख्यात महिलाधृतराष्ट्र की पत्नी तथा दुर्योधन की माता गंधार प्रदेश की राजकुमारी थीइसलिए कुरु कुल में यह गांधारी के नाम से जानी गयी। इनके भी वास्तविक नाम का कहीं कोई जिक्र नहीं है। 




सूर्य का आव्हान करती राजकुमारी कुंती 
 (7) कुंती- पांडवों की माता का वास्तविक नाम ‘पृथा’ था। यह कृष्ण के पिता वासुदेव की बहन थी। पृथा के पिता शूरसेन ने अपने निस्संतान मित्र ‘कुन्तिभोज’ को पृथा गोद दी थीअतः कुन्तिभोज के नाम पर पृथा को कुंती के नाम से जाना गया। इनका आज भी इनका विख्यात एवं प्रचलित नाम कुंती ही है। 



पांडू की मृत्यु पर विलापरत माद्री 
 (8) माद्री- पांडवों की दूसरी माता ‘मद्रदेश’ की राजकुमारी थीअतः उन्हें ‘माद्री’ के नाम से जाना जाता है। इनका भी वास्तविक नाम अज्ञात है। 





द्रौपदी
 (9) द्रौपदी- अपने समय की सताई हुयी किन्तु स्वभाव से क्षमाशील नारी द्रौपदी को यह नाम अपने पिता द्रुपुद के कारण मिला। आज भी यह लोक में यह इसी नाम से विख्यात है। वस्तुतः अग्निकुंड से उत्पन्न इस महिला का वर्ण श्याम रंग (कृष्ण वर्ण) थाअतः इसका नाम  कृष्णा रखा गया। महा भारत में इस नाम का उल्लेख हैकिन्तु इस नाम से यह महिला अल्पज्ञात है। 



माता सीता 
 (10) वैदेही- मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की पत्नी ‘सीता’ जनमानस में आदर्शतम एवं सर्वपूज्य महिला है। हल से भूमि जोतने के दौरान भूमि पर बनी लकीर को सीता कहा जाता है। इस महिला के जन्म की यही कहानी है। जनक राज्य की पुत्री होने के कारण जानकी तथा अपने पिता विदेह के नाम पर ‘वैदेही’ नाम से प्रसिद्द है। 
  इसी प्रकार और भी विख्यात महिलायें भारतीय संस्कृति में हुई हैजिनके नाम का रहस्य उजागर नहीं है. सभी की ख्याति और उनका व्यक्तित्व तत्कालीन राजनीति और अन्य आधारों पर प्रचलित है।                   

शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

ऊर्जा का अपूर्व भण्डार :

 अंकुरित अन्न आहार 

( दधिमति पत्रिका के पाठकों को कुछ उपयोगी सामग्री इसके "सेहत और खानपान" स्तंभ के माध्यम से प्रस्तुत की जाये,इस भाव से प्रेरित व अनुप्राणित होकर लिखा गया यह सर्वथा मौलिक लेख आप के लिए आपकी सेहत से जुड़े विषय पर प्रस्तुत है, इस आशा के साथ कि यह आपकी खान पान की आदतों में सकारात्मक एवं सार्थक बदलाव लाने में  सहायक सिद्ध होकर आप के स्वास्थ्य संरक्षण में सहायक सिद्ध होगा.लेख अपने विषय पर स्पष्ट एवं परिपूर्ण हो, के ध्येय एवं लक्ष्य के कारण कुछ लंबा अवश्य हो गया है. बी.जी.शर्मा )



               
यदि  हम जीभ के स्वाद को अनदेखा कर सेहत को महत्व देते हैं तो अंकुरित अन्न का नाश्ता लाजबाब है व सेहतमंद गुणों का इतना बड़ा खजाना है कि हम इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते .वस्तुतः अंकुरित अन्न फलों का श्रेष्ठ विकल्प है एवं अंकुरित अन्न खाने वालों को सेहत के लिए फलाहार पर कम  निर्भर रहना पडता है. हम बाजार से लाकर ताजा फल एवं सब्जी भी खाते हैं ,तो उसका सम्बन्ध विच्छेद अपनी डाल अथवा अपनी जड़ से कुछ घंटेकुछ दिन पूर्व हो चुका होता हैपरिणामतः उसके जीवन एवं वृद्धि पर तो विराम लग ही चुका होता है बल्कि वह फल एवं सब्जी क्रमश ह्रास एवं मृत्यु की और अग्रसर हो रही होती है. यदि गर्मी का मौसम है एवं फलों सब्जियों के स्टाक के लिए रेफ्रिजरेशन की सुविधा नहीं है तो उस फल एवं सब्जी की जीवन शून्य होने की तरफ अग्रसर होने की  यह गति और भी ज्यादा हो जाती है. जबकि इसके विपरीत अंकुरित अन्न खाना बगीचे में पेड़ के नीचे खड़े होकर तुरंत  ताजा फल तोड़ कर खाने के समान है. इस का कारण भी स्पष्ट है कि अंकुरित अन्न हमारे दाँत के नीचे आने एवं पिसने तक जीवित इएवं सतत बढ़ता हुआ दाना होता है. जीवितजीवंत एवं जीवनी शक्ति से युक्त इस आहार में  दुर्लभ विटामिन्स एवं एंजाइम्स होते हैं जो सिर्फ अन्न में अंकुरण के समय ही मौजूद होते हैं व  कहीं किसी औषधि एवं फल में नहीं होते.



अन्न अंकुरण के समय दाने में दुर्लभ विटामिन्स एवं एंजाइम्स क्यों होते हैं ?



इस  में प्रकृति की लीला या मायायों समझी जा सकती है कि प्रकृति एक मृत एवं निष्क्रिय सूखे हुए बीज में अंकुरण के समय नव जीवन का संचार उस दाने की पुनः उत्पादन क्षमता सक्रिय करने की नीयत से,करती है एवं उस नवजीवन संचार के सीमित समय अवधि (जब दाना फटता हैऔर उसमे अंकुर प्रस्फुटित होता है एवं पौधे का आकार  ग्रहण करने से पूर्व ) के लिए प्रकृति उसको वरदान स्वरुप अपने श्रेष्ठतम निधियां अर्थात विटामिन्स एवं एंजाइम्स प्रदान करती है एवं इस के पीछे प्रकृति का उद्देश्य होता है उसे अर्थात दाने को अतिरिक्त जीवनी क्षमता प्रदान करना.

अंकुरित  अन्न किसी भी रूप में किसी भी सहयोगी एवं स्वादवर्धक आहार के साथ अपनी पाचन क्षमता के एवं अपने शरीर की प्रकृति के अनुकूल मर्यादित मात्रा में नियमित लिए जाएँ तो ना सिर्फ अभूतपूर्व ऊर्जा एवं उत्साह देते है वरन अल्पकाल में ही चेहरे पर एक अपूर्व ओज एवं कांति झलकने लगती है. अंकुरित अन्न शरीर की चयापचय प्रणाली को भी दुरुस्त करते हैंपरिणामतः दहन भट्टी अर्थात अग्न्याशय भी शर्करा को ठीक से जलाने का काम करती है एवं इस से मधुमेह नियंत्रण भी सहज हो जाता है. ये शरीर की सामान्य दुर्बलता दूर करता है एवं कोलेस्ट्रोल नियंत्रण करने के कारण ये रक्त चाप नियंत्रण करता हैपरिणामतः ह्रदय रोग को भी नियंत्रित करने में सहायक है. वस्तुतः अंकुरित अन्न आहार के लाभ बताए नहीं जा सकतेइन्हें स्वयं लेकर ही महसूस किया जा सकता है. उत्साह एवं चुस्ती फुर्ती आपको दो चार दिन में एवं त्वचा एवं चहरे पर ओज एवं कांति एक डेढ़ महीने में महसूस होने लगेगी ! अंकुरित अन्न जीवनी शक्ति से भरपूर जीवित एवं जीवंत ऐसा अद्भुत आहार है कि बुढ़ापे की प्रक्रिया को धीमा करता है एवं युवा अवस्था का काल दीर्घ कर देता है. यह शरीर को डीटोक्सीफाई करने में मदद करता है क्यों कि अपनी क्षारीय प्रकृति के कारण हमारे शरीर के विजातीय द्रव्यों को निकाल बाहर करता है. अपनी क्षारीय प्रकृति के कारण शरीर के आंतों के अति अम्लोत्पादन (एसिडिटी) को तटस्थ एवं अप्रभावी कर देता है. अंकुरित अन्न फाईबर का अपूर्व भण्डार हैपरिणामतः कब्ज पर नियंत्रण करके पाचन शक्ति को दुरुस्त करता है. यदि आप अंकुरित अन्न का नाश्ता लेते हैं तो आपको इतनी ऊर्जा अल्प मात्रा में अंकुरित अन्न खाने में मिलती है कि आप को ऊर्जा के लिए आहार की आवश्यकता महसूस नहीं होती व ना ही उदर ही आहार की मांग करता हैपरिणामतः अनावश्यक आहार की मात्रा घटने से आप के लिए अपना वजन घटाना एवं नियंत्रण में रखना सहज हो जाता है.


अन्न अंकुरण कैसे करें ?




अन्न  अंकुरण का परंपरागत तरीका सहज एवं सरल है कि अन्न को पहले पर्याप्त समय तक भिगो दिया जाए एवं भीग जाने के बाद कपडे में बाँध कर पर्याप्त समय के लिए रखा जाये कि दाने में अंकुर फूट जाए. आजकल बाजार में डिब्बानुमा उपकरण (स्प्राउट मेकर) मिलते हैंजो अन्न अंकुरण बेहतर तरीके से करते हैं. ग्रीष्म एवं वर्षा ऋतु में दाने सहज ही अल्प समय में अंकुरित हो जाते हैं जब कि शरद  ऋतु में थोडा ज्यादा समय लगता है. स्प्राउट मेकर डिब्बे में अपेक्षा कृत सुगमता से अंकुरण होता है एवं दाने का अंकुरण तीव्र गति से होकर अधिकांशतः दाने अंकुरित हो जाते हैं. आप अंकुरित आहार की नियमितता के लिए अंकुरित किये दाने फ्रिज में रख सकते हैंजो खराब नहीं होते हैं. ( कारण कि फ्रिज में भी उनकी वृद्धि प्रक्रिया जारी रहती है,बेशक ठन्डे वातावरण के कारण इसकी गति कम होती है ) जो आप खाने में काम में ले सकते हैं. ज्यादा समय फ्रिज फ्रिज में रखे या ताजा अंकुरित अन्न खाने को उपलब्ध हो तो फ्रिज में रखे अंकुरित अन्न को आप पका कर दाल एवं सब्जी के रूप में खाने में काम में ले सकते हैं.


कौन सा अन्न अंकुरण के लिए श्रेष्ठ है ?


इस  का कोई निश्चित सूत्र नहीं ! देशकालऋतुभौगोलिक परिस्थितिअन्न का प्रचलन एवं उपलब्धता तथा सबसे बढ़कर प्रयोक्ता की रूचि के अनुसार प्रत्येक अन्न जो मानव के लिए खाद्यान्न की श्रेणी में आता हो ,को अंकुरण कर खाया जा सकता है. हमारे यहाँ की परिस्थिति में गेहूं को भी अंकुरित कर खाया जा सकता है एवं दाना मेथी भी (प्रायः कम गर्मी में अंकुरित होने वाले )किन्तु ज्यादातर दलहनयथा चनामोठचौलामूंग आदि का प्रचलन है. किन्तु अंकुरित आहार में ज्यादा प्रचलन मूंग का ही है. इस का कारण सहज उपलब्धताइसका सुपाच्य प्रोटीन एवं निरापद आहार होना है. ( इस लेख में भी मूंग को केंद्र में रख कर ही हम अंकुरित आहार पर चर्चा करेंगे )

अंकुरित अन्न (मूंग) को कैसे खाया जाये ?




इस  का भी कोई निश्चित सूत्र नहीं है. मूल उद्देश्य है कि अंकुरित आहार हमारे उदर में पहुंचाना एवं इसके चलते चाहे स्वाद के लिए या इसके गुण अभिवृद्धि के लिए इसके साथ सहायक आहार लिया जा  सकता है,  बल्कि लिया ही जाता है. कुछ सुझाव यों है –


(१)   सर्वाधिक प्रचलित सहायक आहार अंकुरित मूंग के लिए गुड़ हैजिसके साथ अंकुरित मूंग को चबा चबा कर खाया जाता है. यह बच्चों युवकों एवं परिश्रम करने वालों के लिए श्रेष्ठ है क्यों कि यह अपनी इक्षु शर्करा के कारण तुरंत ऊर्जा की आवश्यकता की पूर्ति करता है. इसमें गुड़ के अतिरिक्त या विकल्प के तौर पर भीगी हुई किशमिश भी प्रयुक्त की जा सकती है. यह शक्तिदायक तो है ही साथ ही साथ अंकुरित आहार को सुपाच्य बना देती है. संभवतः यह मीठा सहायक आहार मधुमेह के मरीज ना लेना चाहेंयदि लेवें तो भी अपने चिकित्सक की सलाह से लेवें.


(२)   अंकुरित मूंग के साथ मक्खन अथवा घी एवं पीसी मिश्री मिला कर ली जा सकती है. यह युवकों बच्चों एवं परिश्रम करने वालों के लिए श्रेष्ठ है इस से रुक्ष आँतों को स्नेह भी मिलता है. यदि मिश्री मधुमेह अथवा अन्य कारण से अनुकूल  ना हो तो इस की जगह मक्खन एवं नमक लिया जा सकता है.


(३)   अंकुरित मूंग के साथ दही एवं पीसी हुयी  मिश्री/ शक्कर ली जा सकती है . दही अपने में अवस्थित मानव मित्र जीवाणुओं ( लेक्टो बेसिली बेक्टेरिया) के कारण मूंग के प्रोटीन को पचाने हेतु  श्रेष्ठ पाचक का काम करता है. इसको ज्यादा पौष्टिक एवं ऊर्जादायी बनाने के लिए इस में अर्थात दही में  घी / मक्खन मिलाया जा सकता है . एक विकल्प शहद भी है जो ना सिर्फ ऊर्जा प्रदाता है बल्कि अंकुरित अन्न एवं दही के साथ मिल कर इनके  गुणों को द्विगुणित कर देता है एवं दही के साथ इसका संयोग श्रेष्ठ सौंदर्य वर्धक आहार भी है.


(४)   अंकुरित मूंग को सलाद कचूमर के साथ भी रूचिकर बना कर लिया जा सकता है. रूचि के अनुकूल प्याज. टमाटर के बारीक कतरन एवं थोडा सा  नीम्बू का रस एवं नमक,लाल / काली मिर्च पावडर मिला कर लेने से चटपटा किन्तु स्वस्थ्यप्रद आहार पसंद करने वालों के लिए श्रेष्ठ विकल्प है.


(५)   अंकुरित मूंग को फ्रूट चाट (मिक्स फ्रूट कचूमर नमक काली मिर्च के साथ ) लिया जा सकता है. चूँकि अंकुरित मूंग एक प्रोटीन आहार है अतः यह भी बेहतर हो सकता है कि इस को प्रोटीन पाचक फल विशेष के साथ लिया जाये. प्रोटीन को पचाने में सक्षम फल है पपीता. पपेन एक ऐसा रसायन है जो कि सिर्फ पपीते में ही उपलब्ध है एवं इस रसायन को प्रोटीन पाचक के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है. पपीते को विटामिन ए के श्रेष्ठ स्त्रोत के रूप में जाना जाता है. ध्यान देने योग्य बात यह हैं कि मूंग उबाल कर दाल/ खिचड़ी  के रूप में खाने से सुपाच्य होती है किन्तु कच्चा खाने के लाभ अलग ही है. अंकुरित मूंग अंकुरण के कारण सुपाच्य हो जाता है किन्तु कच्चा आहार तो कच्चा ही होता है. अतः इसके सहायक आहार इसे पचाने में मदद करते हैं.





एक अभ्यास आपके जीवन का कायाकल्प कर सकता है कि आप पका कर खाया जाने वाला अन्न यथा मूंग दालमूंग खिचड़ी,चनाचौला,मेथी दानाआदि सूखे दाने की बजाय इन्हें अंकुरित कर पका कर खाएं. यहाँ तक कि गेहूं के दलिये की जगह अंकुरित गेहूं को नमकीन खिचड़ी के रूप में पका कर अथवा उबले अंकुरित दाने घी शक्कर अथवा दूध शक्कर मिला कर खाने से इनके पोषण मूल्यों में कई गुणा वृद्धि कर देता है. ज़रा सोचिये ! क्या सूखे अन्न की जगह भीगा और अंकुरित अन्न पकाया हुआकोई नुकसान पहुंचा सकता हैसिवाय इसके कि तैयारी में यह आप से थोड़ा परिश्रम और समय ज्यादा मांगता है.
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संक्षेप एवं सार रूप में आप अंकुरित मूंग किसी भी सहायक आहार के साथ अपनी रुचि अनुकूल लें या बदल बदल कर रुचि बनाये रखने के लिए लेवेंपर इतना अवश्य ध्यान रखें कि आँत की सुविधा के लिए थोड़ा दांत से ज्यादा परिश्रम करावें. चबा चबा कर खाया कच्चा अंकुरित अन्न आप को ज्यादा लाभ देगा.  एक सावधानी अवश्य रखें कि खाने के लिए प्लेट में सजाने से पूर्व ऐसे दाने जो भीगे तो है किन्तु उनमे अंकुरण शुरू नहीं हुआ हैसावधानी पूर्वक अलग छांट दें . अंकुरण शुरू ना हुआ दानाहो सकता हैं सडने की प्रक्रिया से गुजर रहा हो एवं फ़ूड पायजनिंग का कारण बन सकता हैक्यों कि वह दाना लंबे समय से भीगा  हुआ पड़ा है. अंकुरण शुरू हो चुका दाना याने जो दाना फट चुका एवं उसके शीर्ष पर नन्हा अंकुर नजर आ रहा होवह कच्चा खाने के लिए निरापद है.  अंकुरित अन्न जो आपने आहार के लिए छांट कर रखे हैंको प्लेट में सजाने से पूर्व आप एक बार साफ़ ताजे पानी में डुबो कर धो अवश्य लें.
सार यह है कि अंकुरित अन्न सेहत का खजाना है. आप की सेहत को चाकचौबंद रख कर आप के शरीर की रोग प्रतिरोध क्षमता बढाता है एवं डाक्टर एवं अस्पताल के आप के फेरे कम करता है. किन्तु जरूरी है कि रसना पर आपका नियंत्रण हो एवं दृढता पूर्वक आप अंकुरित अन्न जैसे सात्विक आहार को अपनावें. आप दिन भर इधर उधर नाते रिश्तेदारों के यहाँ एवं व्यावसायिक मुलाकातों यात्राओं,यार दोस्तों एवं सहकर्मियों के साथ गपशप  के दौरान चटपटे मसाले दार एवं तले हुएस्वास्थ्य के दुश्मन आहार से संभवतः ना बच पायें किन्तु एक नेक काम आप की अपनी सेहत के लिए कर सकते हैऔर वह है सुबह की शुरुआत अंकुरित अन्न का सात्विक एवं स्वास्थ्यप्रद नाश्ता करके करें. बाकी तो मर्जी है  आपकी क्योंकि आखिर पेट है आपका और सेहत भी है आपकी.


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