‘‘धरती पर
प्रत्यक्ष रूप से अगर पवन-पुत्र हनुमान जी के दर्शन करने हो
तो देव भूमि हिमाचल की राजधानी शिमला जरूर जावें’’ यह
बात अन्तर्राष्ट्रीय ख्यातनाम न्यूरो सर्जन जो कि मेरे मित्र हैं, डॉ. नगेन्द्र शर्मा ने कही। तभी से मैंने
निश्चय कर लिया कि मुझे देवभूमि जाकर रामभक्त हनुमानजी के दर्शन करने हैं।
14 जून,
2012 को मैं परिवार सहित शिमला पहुंचा तथा हनुमानजी के दर्शन
को आतुर हिम पहाड़ियों के मध्य स्थित मन्दिर में गया। पौराणिक कथाओं के अनुसार तथा
वहां लगे शिलालेख के आधार पर यह मन्दिर जाखू पहाड़ी पर स्थित है।
शिमला शहर से
मात्र 2 कि.मी. की दूरी पर घने पहाड़ी तथा देवदार के वृक्षों से घिरी पर्वतमाला जिसे जाखू
पहाड़ी कहते हैं। जहां पर यह मन्दिर स्थित है। समुद्रतल से 8500 फीट की ऊँचाई तथा शिमला शहर के ऐतिहासिक रिज मैदान के पूर्व में होने से
आसानी से पहुंचा जा सकता है।
इतिहास - पौराणिक तथा रामायणकाल के पूर्व राम तथा रावण के मध्य लंका विजय के दौरान
मेघनाद के तीर से भगवान राम के अनुज लक्ष्मण घायल एवं बेहोश हो गये थे। उस समय सब
उपचार निष्फल हो जाने के कारण वैद्यराज ने कहा कि अब एक ही उपचार शेष बचा है।
जिसमें हिमालय के पर्वतमाला की संजीवनी जड़ी बूटी है जो इनका जीवन बचा सकती है। इस
संकट की घड़ी में रामभक्त हनुमान ने कहा कि प्रभु मैं संजीवनी लेकर आता हूँ। आदेश
पाकर हनुमान हिमालय की ओर उड़े, रास्तें में उन्होंने
नीचे पहाड़ी पर ‘‘याकू’’ नामक
ऋषि को देखा तो वे नीचे पहाड़ी पर उतरे। जिस समय पहाड़ी पर उतरे उस समय इस पहाड़ी
ने उनके भार को सहन नहीं किया परिणामस्वरूप पहाड़ी जमीन में धंस गई। मूल पहाड़ी
आधी से ज्यादा धरती में समा गई इस पहाड़ी का नाम जाखू है। यह जाखू नाम ऋषि ‘‘याकू’’ के नाम पर पड़ा। श्री हनुमान ने ऋषि को
नमन कर संजीवनी बूटी के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की तथा ऋषि से वायदा
किया कि संजीवनी लेकर जाते समय ऋषि आश्रम जाखू पहाड़ी पर जरूर आयेंगे परन्तु
संजीवनी लेकर वापस जाते समय रास्ते में ‘‘कालनेमी’’ राक्षस द्वारा रास्ता रोकने पर उससे युद्ध कर परास्त किया। इसी दौरान समय
ज्यादा व्यतीत हो जाने के कारण सूक्ष्म भाग से लंका पहुंचने का निश्चय कर रवाना
हुए जहां श्रीराम उनका इन्तजार कर रहे थे। उसी भागमभाग तथा समयाभाव के कारण श्री
हनुमान वापसी यात्रा में ऋषि ‘‘याकू’’ के आश्रम में जा नहीं सके जहां पर ऋषि श्री हनुमान का इन्तजार कर रहे थे।
श्री हनुमान ‘‘याकू’’ ऋषि को
नाराज नहीं करना चाहते थे इस कारण अचानक प्रकट होकर वस्तुस्थिति बताकर अलोप (गायब) हो गये। ऋषि याकू ने श्री हनुमान की याद
में वहां मन्दिर निर्माण करवाया। मन्दिर में जहां पर हनुमानजी ने अपने चरण रखे थे, उन चरणों को मारबल पत्थर से बनवाकर रखे गये हैं तथा ऋषि ने वरदान दिया कि
बन्दरों के देवता हनुमान जब तक यह पहाड़ी है लोगों द्वारा पूजे जावेंगे।
आज भी हजारों
की संख्या में पर्यटक यहां पर आते हैं, तथा बन्दरों को
मूंगफली तथा केले आदि खिलाते हैं, जो प्रेम से खाते
हैं। इसी मन्दिर परिसर में गत तीन वर्षों पहले 108 फीट ऊँचे कद की आधुनिक नवीन तकनीकी युक्त हनुमान मूर्ति का निर्माण करवाया
गया। इस मूर्ति निर्माण में 1.5 करोड़ की लागत आई
तथा यह मूर्ति 1.5 टन वजनी है। मूर्ति निर्माण में
सैंसर लगाया गया है जिससे पक्षी आदि मूर्ति पर नहीं बैठे।
यात्रा का
सही समय - मार्च से जून तक का समय अत्यंत ही
उपयुक्त है। भारत के प्रत्येक बड़े शहर/राज्य की राजधानी से ‘‘कालका’’ रेल्वे स्टेशन जुड़ा हुआ है। यहां तक
आने के बाद यहां से छोटी लाईन से ‘‘खिलौना ट्रेन’’ के माध्यम से शिमला पहुंचा जा सकता है। बस सुविधा भी कालका से उपलब्ध है।
सर्दियों में शिमला का तापमान 2 डिग्री से.ग्रे. से 8 डिग्री
से.ग्रे. तक रहता है। अक्टूबर से
फरवरी तक यहां पर बर्फ गिरती है जहां स्नोफॉल एवं स्केटिंग का पर्यटक आनन्द लेते
हैं।
मन्दिर में
दर्शन समय - गर्मियों में प्रातः 7 बजे से रात्रि 8 बजे तक तथा सर्दियों में
प्रातः 8 बजे से सायं 6 बजे तक दर्शन करने हेतु मंदिर खुला रहता है।
सावधान - मन्दिर प्रवेश के समय बन्दरों की बहुतायत होती है इसलिए बन्दरों से छेड़-छाड़ नहीं करें तथा बिना छेड़-छाड़ बन्दर किसी को भी
हानि नहीं पहुंचाते हैं। बच्चों का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है।
. दाधीच रामगोपाल शर्मा (जन सम्पर्क अधिकारी,जोधपुर)
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