-तरुण कुमार दाधीच
(
धरती चपटी है, यह स्थापित मान्यता थी।
किन्तु नव खोज एवं अनुसन्धान ने सिद्ध किया कि धरती गोल है। ठीक वैसे ही स्थापित
मान्यता है कि रावण के दस सिर थे। किन्तु दधिमती लेखक परिवार से हाल ही में जुड़े
विद्वान लेखक श्री तरुण कुमार दाधीच का यह अनुसंधानपरक लेख इस विषय पर आपको
निश्चित ही नवदृष्टि देगा – संपादक )
हमारी संस्कृति में त्यौहार, माला में
मोतियों की भांति पिरोये हुए हैं । प्रत्येक त्यौहार अपना सामाजिक, धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व रखता है । विजय दशमी का त्यौहार सांस्कृतिक
दृष्टि से भगवान राम की असत्य पर सत्य की, अधर्म पर
धर्म की विजय के फलस्वरुप हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है । रावण बुरे कार्यों का, कुम्भकरण आलस्य का औेर मेघनाद कटु वचनों के प्रतीक के रूप में इनके पुतले
प्रतिवर्ष जलाए जाते हैं, ताकि हम बुराइयों को त्यागकर
अच्छाइयों की ओर प्रेरित हों ।
रावण के बारे में यह प्रश्न उठता है कि उसके दस सिर थे अथवा नहीं ? महर्षि वाल्मीकि एवं तुलसी के अनुसार रावण दस सिर वाला अर्थात् दशानन नहीं
था । वस्तुतः रावण के पुतले में दर्शाए गए दस सिरों में पाँच पुरुष और पाँच स्त्री
के विकारों को प्रकट करते हैं । उसके पुतले पर लगा गधे का सिर यह प्रकट करता है कि
वह मतिहीन एवं हठी था । यह भी सर्वविदित है कि रावण ज्ञानी और महापंडित था ।
क्योंकि पुतले में रावण के हाथों में अस्त्र-शस्त्र के साथ
वेद और शास्त्र इस तथ्य की पुष्टि करते हैं । रावण में अच्छाइयों और बुराइयों का
मिश्रण था, परन्तु वह अपने अदम्य अभिमान के कारण मारा गया ।
वाल्मीकि ने अपनी रामायण में स्पष्ट उल्लेख किया है कि जब हनुमान, सीता का पता लगाने लंका गए थे तब उन्होंने रावण को एक सिर वाला देखा ।
रावण के दस सिर थे अथवा नहीं ? इस सम्बन्ध में
अनेक मत है । इन मतों के आधार पर रावण को दशानन नहीं कहा जा सकता है ।
कहा जाता है कि महापंडित रावण चार वेद और छः शास्त्र का ज्ञाता होने के
कारण दोनों के संयुक्त योगफल दस के प्रतीक स्वरूप दशानन कहलाया । यह भी कहा जाता
है कि उस समय रावण के पास ऐसा यंत्र था जो उसे दसों दिशाओं की जानकारी देता था ।
इस कारण उसे दशानन कहा गया । ' जैन पद्म पुराण ' में महाकवि रविषेणाचार्य ने स्पष्ट लिखा है कि रावण के गले में नौ मणियों
युक्त एक कंठ हार था जिसमें उसके नौ प्रतिबिम्ब दिखते थे । इस कारण से रावण को
दशानन कहा जाने लगा । यह भी कहा जाता है कि रावण का साम्राज्य दस राज्यों तक फैला
था । अतः ये दस राज्य रावण के आनन थे और वह दशानन कहलाया ।
इन पौराणिक तथ्यों से यह सिद्ध होता है कि रावण के दस सिर नहीं अपितु एक
सिर ही था । रावण की राजसिक श्रद्धा अत्यंत ही प्रबल थी क्योंकि बड़ी से बड़ी
सिद्धि प्राप्त करने के लिए उसने कभी ब्राह्मण को बलि का साधन नहीं बनाया बल्कि
अपने उपास्य देव शिव को अपने ही सिरों की आहुति देकर प्रसन्न किया। रावण ने दस बार
अपना सिर शिव को अर्पित किया । इस कारण भी रावण दशानन कहलाया ।
रावण पर राम की विजय की स्मृति में विजय दशमी का पर्व परम्परागत रूप से
मनाया जाता है । वर्तमान युग में मनुष्य, काम, क्रोघ, मद, लोभ, मोह रुपी पंच विकारों में लिप्त है । अधर्म, भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता, अशांति होने के कारण वर्तमान
युग को रावण राज्य भी कहते है । इन सभी विकारों
का परित्याग कर राम-राज्य
की कल्पना की जा सकती है।
उदयपुर (राज.)फोन : 0294-2482020 मो. 94141 77572
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